एक सवाल
बहुत लोगो के मन मे सवाल ये उठ रहा हैं कि शिक्षकों का आंदोलन उचित हैं या अनुचित?
राज्य में जब भी वेतनमान की बढ़ोत्तरी होती हैं तो शिक्षाकर्मी को ही क्यो वेतन विसंगति का सामना करना पड़ता हैं?
जबकि समाजिक दृश्टिकोण से शिक्षा, और शिक्षकों का ही महत्व समाज मे प्रथम हैं। फिर भी इनकी समस्याओ और वेतन पर सुधार इनके उग्र आंदोलन के बाद ही होता हैं।
इसके पीछे राजनीतिक वजह भी हैं। आजकल वोट बैंक किसी समुदाय से लेने के लिए एक पूरे समुदाय की मुख्य मांग को प्रभावित करने के उपरांत उस आंदोलन के जरिए, पूरी की जाने वाली सरकारी मांग से सत्ताधिन सरकार को लाभान्वित करते आई हैं।
उत्तरप्रदेश में शिक्षामित्रों को भी चुनाव के समय तमाम वादे किए गए थे। किंतु सरकार बनने के बाद भी वो आंदोलन करने अभी भी सड़को पर है।
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला चुनाव के बाद दिया जाता है, चुनाव के पहले उनके मेनिफेस्टो में उनकी तमाम मांगो को तवज्जो दिया जाता हैं।
मतलब मौक़ापरस्त वादों से भी समस्या जस की तस बनाने एक माहौल बनाया ही जा रहा हैं।
जब से शिक्षा का निजीकरण हुवा हैं। शिक्षा 2 स्तरों में बट चुकी हैं।
राज्य शासन ने अभी बोनस दिया किसानों को वो भी किसानों के आंदोलन चलने के बाद, एक तरफ शराब को सरकार ने संविलियन कर दिया तो शिक्षाकर्मी क्यो वंचित हैं।
जबकि इन्होंने ये अल्टीमेटम 3 महीने पूर्व ही दिए थे, तब राज्य के सरकार औऱ विकासशील निर्णय लेने में चूक कैसे हो गयी?
दूसरी तरफ सत्ताधारी विधायक और मंत्री इस आंदोलन पर कोई एक्सन प्लान भी नही बनाये और ना ही सकारात्मक बैठकें हुई।
जब आपके जनप्रतिनिधि अपनी वोट के लिए आपके दरवाजे पर आते हैं तो आपकी मांगों को पूरा करने के प्रयास हेतु आपके मंच तक जरूत पहुचना चाहिए।
कुलमिलाकर देखा जाए तो इस राज्य में , आगनबाड़ी, रोजगार सहायक, कम्प्यूटर सहायक, रसोइया, सफाईकर्मी, सचिव, यने जो रोजमर्रा की जनता से जुड़े काम वाले सरकारी मुलाजिम ही सरकार के प्रति कभी वेतन, कभी पदोन्नति, तो नियमित, तो कभी स्थान्तरित होने आंदोलन करते ही आ रहे है जबकि हमारे पास, नीति आयोग और विभिन्न आयोग बनाये गए है इनका काम अगर सही नही चल रहा तभी ये सड़को पर है।
दूसरी तरफ इनमे कोई किसान, कोई मजदूर परिवार के ही पुत्र हैं जिसे अपने बच्चो के साथ वर्तमान जीवन हेतु बाकी सरकारी मुलाजीमो की तरह सरकारी तवज्जो मिले।
उम्मीद हैं सरकार अपने किसान पुत्रो, अपने राज्य की प्रजा के साथ, बच्चो के बेहतरीन शिक्षा हेतु अच्छा निर्णय लेगी।
कल ही एक तस्वीर में हमारे आदरणीय मुख्यमंत्री जी ने इनकी वर्तमान मांगो को जायज ठहराते हुवे सहयोग दिया था। तो अभी वर्तमान में डॉ साहब वर्तमान मुख्यमंत्री भी हैं तो मुझे नही लगता कि इनकी मांगे पूरी होने में ज्यादा समय लगेगा।
राज्य में जब भी वेतनमान की बढ़ोत्तरी होती हैं तो शिक्षाकर्मी को ही क्यो वेतन विसंगति का सामना करना पड़ता हैं?
जबकि समाजिक दृश्टिकोण से शिक्षा, और शिक्षकों का ही महत्व समाज मे प्रथम हैं। फिर भी इनकी समस्याओ और वेतन पर सुधार इनके उग्र आंदोलन के बाद ही होता हैं।
इसके पीछे राजनीतिक वजह भी हैं। आजकल वोट बैंक किसी समुदाय से लेने के लिए एक पूरे समुदाय की मुख्य मांग को प्रभावित करने के उपरांत उस आंदोलन के जरिए, पूरी की जाने वाली सरकारी मांग से सत्ताधिन सरकार को लाभान्वित करते आई हैं।
उत्तरप्रदेश में शिक्षामित्रों को भी चुनाव के समय तमाम वादे किए गए थे। किंतु सरकार बनने के बाद भी वो आंदोलन करने अभी भी सड़को पर है।
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला चुनाव के बाद दिया जाता है, चुनाव के पहले उनके मेनिफेस्टो में उनकी तमाम मांगो को तवज्जो दिया जाता हैं।
मतलब मौक़ापरस्त वादों से भी समस्या जस की तस बनाने एक माहौल बनाया ही जा रहा हैं।
जब से शिक्षा का निजीकरण हुवा हैं। शिक्षा 2 स्तरों में बट चुकी हैं।
राज्य शासन ने अभी बोनस दिया किसानों को वो भी किसानों के आंदोलन चलने के बाद, एक तरफ शराब को सरकार ने संविलियन कर दिया तो शिक्षाकर्मी क्यो वंचित हैं।
जबकि इन्होंने ये अल्टीमेटम 3 महीने पूर्व ही दिए थे, तब राज्य के सरकार औऱ विकासशील निर्णय लेने में चूक कैसे हो गयी?
दूसरी तरफ सत्ताधारी विधायक और मंत्री इस आंदोलन पर कोई एक्सन प्लान भी नही बनाये और ना ही सकारात्मक बैठकें हुई।
जब आपके जनप्रतिनिधि अपनी वोट के लिए आपके दरवाजे पर आते हैं तो आपकी मांगों को पूरा करने के प्रयास हेतु आपके मंच तक जरूत पहुचना चाहिए।
कुलमिलाकर देखा जाए तो इस राज्य में , आगनबाड़ी, रोजगार सहायक, कम्प्यूटर सहायक, रसोइया, सफाईकर्मी, सचिव, यने जो रोजमर्रा की जनता से जुड़े काम वाले सरकारी मुलाजिम ही सरकार के प्रति कभी वेतन, कभी पदोन्नति, तो नियमित, तो कभी स्थान्तरित होने आंदोलन करते ही आ रहे है जबकि हमारे पास, नीति आयोग और विभिन्न आयोग बनाये गए है इनका काम अगर सही नही चल रहा तभी ये सड़को पर है।
दूसरी तरफ इनमे कोई किसान, कोई मजदूर परिवार के ही पुत्र हैं जिसे अपने बच्चो के साथ वर्तमान जीवन हेतु बाकी सरकारी मुलाजीमो की तरह सरकारी तवज्जो मिले।
उम्मीद हैं सरकार अपने किसान पुत्रो, अपने राज्य की प्रजा के साथ, बच्चो के बेहतरीन शिक्षा हेतु अच्छा निर्णय लेगी।
कल ही एक तस्वीर में हमारे आदरणीय मुख्यमंत्री जी ने इनकी वर्तमान मांगो को जायज ठहराते हुवे सहयोग दिया था। तो अभी वर्तमान में डॉ साहब वर्तमान मुख्यमंत्री भी हैं तो मुझे नही लगता कि इनकी मांगे पूरी होने में ज्यादा समय लगेगा।
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