सोशल मीडिया का दौर और शिक्षाकर्मी आंदोलन



सोशल मीडिया का दौर और शिक्षाकर्मी आंदोलन


वक़्त रहते मौके की नजाकत को समझ लिया जाय तो यही राजनीति में उत्तम नीति  कहलाती है। शिक्षा कर्मियों के आंदोलन में यही भूपेश बधेल, अजित जोगी ने अपना समर्थन देकर किया है।....बात अलग है कि सत्ता में रहते हुए क्या किया बताने वाली बात नही है।.... कभी शिक्षा कर्मियों की मांगों का समर्थन सूबे के मुखिया सहित तमाम बड़े नेता जो आज मंत्री है उन्होंने भी किया है।.....उनका समर्थन पत्र आज मीडिया सहित सोशल मीडिया में वायरल हो रहा है। वही वर्तमान में समर्थन देने वाले भी शिक्षा कर्मियों के बीच काफी लोकप्रिय हो रहे है।

भाजपा के थिंक टैंक और सोशल मीडिया पर  पैनी नज़र रखने वाले  इस शिक्षा कर्मियों के मुद्दे को कितनी गंभीरता से ले रहे है।ये उनके चिंतन का विषय है।


प्रदेश की लगभग दो करोड़ पचपन लाख की जनसँख्या में एक लाख अस्सी हजार खुद शिक्षा कर्मी भी शामिल है।और ये प्रदेश के बीस हजार दो सौ सन्तावन सिर्फ़ गांव के लाखों स्कूली छात्रो को पढ़ाने भी जाते है। जबकि स्कूलो की संख्या तो पचास हजार के पार है।

यही लाखो शिक्षाकर्मी छात्रों को एक पढ़ाई लिखाई के साथ अचार विचार और व्यवहार भी सिखाते है। इसमें कौन पास होता है ये फेल ये तो उनके पालको ऊपर निर्भर रहता है। कि शाला मिला होमवर्क उनके बच्चे घर मे कैसे करते है या उनसे करवाते है।


आंदोलन कोई भी हो, कोई भी सरकार हो ... ये मौजूदा सरकार के लिए एक बड़ा सर दर्द होता ही है। शिक्षा कर्मियों के आंदोलन साथ भी ऐसा ही है।

 कैबिनेट की बैठक में शिक्षा कर्मियों के मामले में महत्वपूर्ण फैसला नही लिया जाना इस बात की ओर इशारा करता है कि सरकार अब प्रशासनिक आदेशो के  प्रहार  के मूड़ में आ गई है। जो दिखाई भी दे रहा है। पर कदम आहिस्ता आहिस्ता उठ रहे है।

शिक्षा कर्मियों को सरकार के इस प्रहार की परवाह नही लग रही है। डर लगभग खत्म दिखाई दे रहा है। ...क्योंकि जिन नियमो के तहत ये सरकार प्रशासनिक प्रहार करने  वाली है। उसमें कई पोल भी है। जिसे शिक्षा कर्मियों से जुड़े नेता और जानकार धरना के मंच से बार बार बता रहे है। और सोशल मीडिया के माध्यम से  जानकारी शेयर कर रहे है।


सच्चाई तो यह है कि .... डर तो सबको लगता है।  कुछ शिक्षाकर्मी शायद प्रशासनिक प्रहार से काम पर चले जाय पर उनका मन और आत्मा कहाँ होगी ये आंदोलन को अफसरो के दम पर कुचलने वाले शायद नही समझेंगे ।


सोशल मीडिया का दौर है और आज कल तो शिक्षा कर्मियों के लिए भी स्मार्टफोन अनिवार्य है। औऱ प्रदेश के एक लाख अस्सी हजार शिक्षक स्मार्ट फोन से लैस है। और ये कई सोशल मीडिया ग्रुपस में सक्रिय है, और इनकी सक्रियता अब इनकी मांगों को लेकर दिखाई दे रही है। उसे समझने के लिए मोजूदा सरकार की पार्टी के आई टी सेल सोशल मीडिया में सरकार के प्रति जो शिक्षा कर्मियों के विचारों समझने में फेल है। और समझ भी जाय तो समझाने के लिए पढ़े लिखे बड़ी संख्या वाले शिक्षा कर्मियों के वर्ग को कभी सन्तुष्ट नही कर पाएंगे।
सोशल मीडिया से निकले छोटे छोटे विचार और विरोध के तीर कब बड़े हो जाते है पता नही चलता है। पिछले लोकसभा मे इसका अनुभव विपक्ष को सत्ता गवाने के बाद समझ आया गया है।

अभी जिस तरह से शिक्षा कर्मी सोशल मीडिया में एक्टिव हुए है। आपनी भड़ास निकालने के लिए सत्ता में बैठें हुक्मरानों का पुलिंदा खोलना शुरू किए है उससे ये तो तय है कि

आने वाले समय मे सोशल मीडिया में स्मार्टफोन धारक शिक्षाकर्मी कहर ढाएंगे ....क्योकि गूगल में सब मिल जाता है।और इसे खोजने वालो की और शेयर करने वालो की संख्या अनगिनत है। क्योकि ये अब दूसरे के लिए नही खुद के लिए संघर्ष कर रहे है।और इनकी इस मुहिम में इनके परिवार और मित्रो का इनके मिलना ही है इसमें दो मत हो ही नही सकता है।
 यही अंदाज शायद जोगी जी और भूपेश बधेल लगा लिए है। क्योंकि बाबा की शिक्षा कर्मियों को दी हुई सफाई वाला लेटर इस बात को समझने के लिए काफी है कि दो दिन बाबा के बयानों को शिक्षा कर्मियों की फौज ने सोशल मीडिया में कैसे प्रतिक्रिया दी  है।

 अब देखना है सरकार की रणनीति क्या है।...... सरकार की चौथी पारी में एक लाख अस्सी हजार का आंकड़ा आपनी क्या भूमिका निभाता है। और सोशल मीडिया को सरकार की पार्टी कैसे हैंडल करती है ये देखना दिलचस्प होगा।
*उत्त्तम तिवारी*
खोजी पत्रकार
बिलासपुर

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