एक आंदोलन ऐसा भी



लोग पूछ रहे -आंदोलन ऐसा भी होता है
गांव में चौपाल के निकट अध्यापकों ने दो गायें बांध दी. एक को थोड़ा - सा सूखा भूसा डाल दिया और दूसरे को हरा- हरा चारा.
ग्रामीण भौचक ये सब देख रहे थे. एक ने पूछ लिया-" मास्साब, ये क्या कर रहे ? एक को हरा चारा और दूजे को थोड़ा सा सूखा भूसा? "
मास्साब ने कोई जवाब नहीं दिया.उसने हाथ जोड़कर केवल विनती की कि आप तो इन गायों को देखते रहो.ये गायें क्या करती हैं?
जिस गाय को हरा चारा मिला था वो तो मस्त मजे से मुंह भरकर चारे खा रही थी और जिसे भूसा डाला गया था, वो बार-बार हरे चारे की तरफ लपकने की कोशिश करती पर रस्सी से जकड़े जाने के कारण उसका थूथन वहां तक नहीं पहुंचता. थक हारकर उस मास्साब की तरफ देखती जिन्होंने दूसरी को हरा चारा डाला था और इसको थोड़ा सा सूखा भूसा.
ग्रामीणों को गायों से बड़ा प्यार होता है.एक से रहा नहीं नहीं गया , वे मास्साब पर बरस पड़े- " ये क्या कर रहे मास्साब? एक को हरा चारा डाल दिया और दूसरे को थोड़ा सा सूखा भूसा? यदि आपको ऐसा ही करना था तो इनको पास- पास नही बांधना था. ताकि हरा चारा देखकर उसको अपने सूखे भूसे पर तरस ते नहीं आता?
मास्साब ने उत्तर दिया- " चाचाजी, देखिएगा जिसको सूखा भूसा दिया है वो भी ५ लीटर दूध देगी और जिसको हरा चारा डाला है वो भी."
अब तो चौपाल में बैठे लोगों का सब्र जवाब दे गया. एक साथ मास्साब पर टूट पड़े, बोलने लगे- " मास्साब , हम जानते हैं कि आप मास्साब हैं. हमारे बच्चों को पढ़ाते हैं. परंतु इसका मतलब ये नहीं कि आप कुछ भी बोलोगे और हम मान लेंगे? जिसको थोड़ा सा सूखा डाला है वो भला ५ लीटर दूध कैसे देगी ?"
" देगी. इसलिए देगी क्योंकि एक का नाम श्यामा है और दूसरे का नाम गौरी. श्यामा सूखा भूसा खाकर भी ५ लीटर दूध देगी"
मास्साब ने जवाब दिया.
पंचों से रहा नहीं गया. उनका गुस्सा फूट पड़ा. पूछा- " नाम अलग होने मात्र से ये गाय थोड़ा सा सूखा भूसा खाकर ५ लीटर दूध कैसे दे सकती है? " हम लोगों को बेवकूफ समझ लिया है क्या? "
मास्साब को इसी क्षण का इंतजार था. मास्साब खड़े हुए, दोनों हाथ जोड़े और चौपाल की ओर मुखातिब होते हुए अपनी विनती सुनाई-
"सरकार एक ही स्कूल में, एक समान योग्यता के बावजूद , एक ही काम के लिए पिछले २० वर्षों से अलग - अलग वेतन दे रही है. अंतर सिर्फ इतना है कि किसी का नाम शिक्षाकर्मी, अध्यापक , संविदा शिक्षक , अतिथि शिक्षक है तो किसी का शिक्षक. जब- जब इन सताए हुए लोगों ने सरकार के सामने अपनी बात रखनी  चाहि थी छत्तीसगढ़ सरकार ने इनकी बात को दमन, छल और विश्वासघात के सहारे दबा दिया. इस बार भी ये सताए हुए लोग शांतिपूर्ण धरना दे रहे थे तो सरकार ने लाठी मारकर हटा दिया और हजारों लोगों को जेल में डाल दिया . यही नहीं जिला और ब्लाक में धरना देने की अनुमति नहीं दे रहे. आप बताओ सरकार को ऐसा करना चाहिए क्या? एक ही काम के लिए अलग- अलग वेतन देना चाहिए क्या? अपना अधिकार मांगने पर लाठी मारना चाहिए था क्या ?"
पंचों ने बहुत धैर्य के साथ सुनने के बाद पूछा," हमने तो सुना था कि आप लोगों को बहुत कुछ दिया है .अभी पुराने मास्साबों के बराबर नहीं दिया क्या? "
मास्साब ने कहा- " दिया होता तो क्या हम उन मास्साबों से भी अधिक मांगने के लिए लड़ रहे हैं ? क्या हम नहीं जानते कि हमें उनसे ज्यादा नहीं मिलेगा. हमें तो अभी उनका आधा भी नहीं मिल रहा है. हम तो सरकार से वो वेतन मांग रहे हैं जो सरकार ने शिक्षकों को आज से ९ साल पहले २००६ में ही दे चुकी है. ९ साल पीछे का वेतन भी सरकार हमकों आज नहीं दे रही है,इसलिए हमें लड़ना पड़ रहा है."
इधर मास्साब और पंच लोग बातों में मसगूल थे और उधर देखते क्या हैं कि गाय रस्सी तोड़कर दूसरे गाय के साथ हरा चारा खा रही थी.
सभी पंचों ने एक दूसरे की तरफ देखते हुए कहा- " ये सरकार तो बहुत अन्याय कर रही इन पर. जब योग्यता और काम समान है तो वेतन अलग- अलग क्यों दे रही ? हम सभी को इनका साथ देना चाहिए. जब हम बेजुबान प्राणियों के साथ असमानता नहीं देख सकते तो फिर ये मास्साब तो हमारे ही भाई- बंधु हैं.हम सब भी इनका साथ देंगे.
यह खबर जब मीडिया के बंधुओं तक पहुंची तो मीडिया के बंधु भी आश्चर्य में पड़ गये और पूछने लगे - " आंदोलन ऐसा भी होता है?

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