सावधान छत्तीसगढ़
*सावधान छत्तीसगढ़*
(गुजरात परिणाम के मद्देनजर छत्तीसगढ़ सरकार को आगाह करती कविता)
गौर करो मुखिया जी अब तो अगली जंग तुम्हारी है
चौथी पारी जीत सकोगे क्या इसकी तैयारी है।
चिंतन कर लेना बातों पर फिर न कोई मलाल रहे
ध्यान रखो गुजरात जैसा न छत्तीसगढ़ का हाल रहे।
वो घर मोदी जी का था पर टक्कर कितनी भारी थी
हार मिले उनको अपने घर कर रक्खी तैयारी थी।
राजयोग का जोर चला यूँ मोदी भैया जीत गये
लेकिन परिणामों से बोलो कितना क्या हम सीख गये
घर का बेटा हूं बतलाकर अपनी लाज बचाई है
सबक सीख लो इन बातों से अपनी बारी आई है
कितनेे वादे कितने जुमले आप जिया में पाल रहे
छत्तीसगढ़ के जन गण सारे हरपल क्या खुशहाल रहे।
कम मत आंकों तुम किसान को और बेरोजगारों को
भूलकर भी कम न आंको अब शिक्षक के परिवारों को।
मदिरा बिक्री के निर्णय से जनता क्रोधित दिखती है
किस प्रदेश में यूँ सरकारी मदिरा ऐसे बिकती है।
कलमकार की पीड़ा भी क्यूं समझ न तुमको आयी है
दूजे राज्य की रचनायें क्यूं तुमको इतनी भायी है
पीड़ा तुमको नहीं है दिखती अपने रचनाकारों की
अपने घर में ही धूमिल है इज्जत इन बेचारों की
कलमकार के दुख कब समझे कब ली जिम्मेदारी है
पीड़ा दिखती नहीं हमारी कैसी ये लाचारी है
युवा पीढ़ी मत अपना अब तोल मोल कर देती है
लगे गलत तो बटन दबा कुरसी का सुख हर लेती है
बजी है घण्टी वक्त बचा है चिंतन बहुत जरूरी है
अकड़ दिखाना माना हमने सत्ता की मजबूरी है।
फर्ज है मेरा वाकिफ मैं इन हालातों से करवा दूँ
सही गलत क्या आगे होगा राह सभी वो बतला दूँ
गीत आज ये गाया फिर से गीत नहीं ये गाऊंगा
एक बरस के बाद आपसे हाल पूछने आऊंगा।
© संदीप 'मित्र'
दुर्ग छत्तीसगढ़
7697562121
(गुजरात परिणाम के मद्देनजर छत्तीसगढ़ सरकार को आगाह करती कविता)
गौर करो मुखिया जी अब तो अगली जंग तुम्हारी है
चौथी पारी जीत सकोगे क्या इसकी तैयारी है।
चिंतन कर लेना बातों पर फिर न कोई मलाल रहे
ध्यान रखो गुजरात जैसा न छत्तीसगढ़ का हाल रहे।
वो घर मोदी जी का था पर टक्कर कितनी भारी थी
हार मिले उनको अपने घर कर रक्खी तैयारी थी।
राजयोग का जोर चला यूँ मोदी भैया जीत गये
लेकिन परिणामों से बोलो कितना क्या हम सीख गये
घर का बेटा हूं बतलाकर अपनी लाज बचाई है
सबक सीख लो इन बातों से अपनी बारी आई है
कितनेे वादे कितने जुमले आप जिया में पाल रहे
छत्तीसगढ़ के जन गण सारे हरपल क्या खुशहाल रहे।
कम मत आंकों तुम किसान को और बेरोजगारों को
भूलकर भी कम न आंको अब शिक्षक के परिवारों को।
मदिरा बिक्री के निर्णय से जनता क्रोधित दिखती है
किस प्रदेश में यूँ सरकारी मदिरा ऐसे बिकती है।
कलमकार की पीड़ा भी क्यूं समझ न तुमको आयी है
दूजे राज्य की रचनायें क्यूं तुमको इतनी भायी है
पीड़ा तुमको नहीं है दिखती अपने रचनाकारों की
अपने घर में ही धूमिल है इज्जत इन बेचारों की
कलमकार के दुख कब समझे कब ली जिम्मेदारी है
पीड़ा दिखती नहीं हमारी कैसी ये लाचारी है
युवा पीढ़ी मत अपना अब तोल मोल कर देती है
लगे गलत तो बटन दबा कुरसी का सुख हर लेती है
बजी है घण्टी वक्त बचा है चिंतन बहुत जरूरी है
अकड़ दिखाना माना हमने सत्ता की मजबूरी है।
फर्ज है मेरा वाकिफ मैं इन हालातों से करवा दूँ
सही गलत क्या आगे होगा राह सभी वो बतला दूँ
गीत आज ये गाया फिर से गीत नहीं ये गाऊंगा
एक बरस के बाद आपसे हाल पूछने आऊंगा।
© संदीप 'मित्र'
दुर्ग छत्तीसगढ़
7697562121
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