भूतनाथ कथा 7
भूतनाथ कथा-7
शक्ति अंतर्ध्यान हुई.....शक्ति का संकेत पाते ही महादेव ने विष्णु को मोहिनी रुप की आज्ञा दी, उसी समय समुद्रमंथन भी हुआ और स्वयं महादेव ने भी एक बहुत ही सुंदर नग्न भिक्षु का रुप ले कर थरुकावनम की ओर चलने लगे और वहाँ पर मोहिनी को इंतजार करने को कहा, जैसे ही नग्न भिक्षु ने थरुकावनम मेँ प्रवेश किया, मोहिनी भी आसक्त होकर उसका अनुसरण करने लगी इतना सुंदर रुप था महादेव का, हरि हर की दिव्य जोड़ी इतनी सुंदर कि काम और रति भी कुछ नहीँ थे , नग्न भिक्षु को देखकर वो सारे स्त्री जिन्हे अपने रुप यौवन और पतिव्रता होने पर गर्व था सारी सुध-बुध खोकर भिक्षु के पीछे चलने लगे और इतने आसक्त होकर चलने लगे कि उनके परिधान (साड़ी) का ऊपर वाला भाग गिरकर धूल से सनने लगा और ठीक इसी तरह मोहनी के पीछे सारे गृहस्थ साधु भी आसक्त होकर चलने लगे और भिक्षु का आकर्षण तो था ही और समस्त जीव भी पीछे पीछे, कोई होश नहीँ और मार्यादा की सारी सीमा जैसे तोड़ने ही वाले हो, इस दृश्य को सारे देवी देवता भी व्योम से देखने लगे, एक थी कूष्ण लीला जिसमेँ केवल कृष्ण ही पुरुष थे पर उस समय शिव लीला थी जिसमेँ स्वयं श्रीहरि भी स्त्री थे; थरुकावनम के बुजुर्ग साधु ऋषियोँ ने जैसे तैसे होश संभाला और अपने पुत्र-वधुओँ का ये हाल देखा तो बड़े लज्जित हुए पर अभी भी विद्या का अहंकार नहीँ गया, और शुरु हो गये अभिचार तांत्रिक हवन करने और लक्ष्य ये था कि कैसे भी उस दिव्य जोड़ी को नष्ट करेँ और तोड़े, यज्ञ से एक शक्तिशाली बाघ को प्रकट किया, भिक्षु ने उसे अपने परशु से उसे नष्ट कर दिया और मारकर उसके खाल को अपने कमर के नीचे वस्त्र के रुप मेँ लपेट लिया, यज्ञ करने वालो का क्रोध और बढ गया और अब कि बार यज्ञ से ईर्ष्या का प्रतीक एक विषधर सर्प को प्रकट किया पर भिक्षु ने उसे एक सुंदर गहने की तरह अपने गले मेँ लपेट लिया, और फिर क्रोधित साधुओँ ने एक राक्षस को प्रकट किया (राक्षस का नाम मायालंकन Muyalankan) जो कि स्वयं यम का तामसिक विकृत रुप था और मृत्यु का देव भी. भिक्षु ने उसे भी अपने पाँव के नीचे रखकर रौँदने लगा, अब कि बार और जोर जोर से होम मंत्रो का ऊच्चारण होने लगा अग्नि देव लड़ने को प्रकट हुए , पर भिक्षु ने उसे अपने दोनो हाथो मेँ कड़ा बनाकर पहन लिया और बचे अग्नि को हिरण का रुप दे दिया, फिर यज्ञ से एक मायावी ड्रम जो अपने भयंकर आवाज से परेशान करता था प्रकट हुआ पर भिक्षु ने उसे अपना डमरु बना लिया, उसके बाद यज्ञ कुंड से मदोन्मत्त हाथी प्रकट हुआ और साधुओँ के आज्ञानुसार भिक्षु को मारने के लिए दौड़ा पर भिक्षु ने सूक्ष्म रुप लेकर नसिका व्दार से घुसकर हाथी को परेशान करने लगा और कुछ समय बाद उसके ऊपर चढकर ऊर्ध्व तांडव(oorthava tandava) करने लगा, सारे प्रयत्नो को निष्फल होता देख, भिक्षु का रौद्र रुप देख साधु लोग काँप ऊठे, डरकर प्रार्थना करने लगे, हे! भिक्षु आप साधारण मानव नहीँ हो अपने दिव्य रुप मेँ प्रकट हो, और उसी समय हमारे महादेव चुतुर्भुज रुप मेँ, जिनके एक हाथ मेँ अग्नि(अग्निदेव), एक हाथ मेँ दिव्य परशु (कहीँ कहीँ पर मृग या डमरु है), एक हाथ मेँ संपूर्ण तंत्र शास्त्र और एक कर अभय मुद्रा मेँ आशीर्वाद देते हुए और नीचे यम और सर्प, अद्भुत तेज के साथ स्वयंभू रुप प्रकट हुए और सभी उपस्थित लोगो ने इस रुप का दर्शन किया और महादेव कहने लगे, 'मेरा नग्न भिक्षु रुप तुम को परेशान करने के लिए नहीँ,अहँ को नष्ट और कर्त्तव्योँ को याद दिलाने के लिए था', मोहनी भी क्षमा याचना करने लगे कि, हे! महादेव मैँ आपको नहीँ पहचान सकी और आपके रुप यौवन पर आसक्त थी और सभी लोगो द्वारा स्तुति करने के पश्चात पूछने लगे आपका यह रुप किस नाम से जाना जायेगा , तब महादेव ने कहा मेरा यह रुप 'चिदंबरम् महादेव' और दक्षिणमूर्ति शिव के नाम से जाना जाएगा.............अगले पोस्ट मेँ जारी ।
(पूर्व की कथायेँ मेँ मेरे टाइमलाइन मेँ साझा है)
॥ॐ नम: शिवाय॥
॥ऊँ भूतनाथाय नम:॥
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