शाकाहारी बनों

*कंद-मूल खाने वालों से* मांसाहारी डरते थे।। *पोरस जैसे शूर-वीर को* नमन 'सिकंदर' करते थे॥ *चौदह वर्षों तक खूंखारी* वन में जिसका धाम था।। *मन-मन्दिर में बसने वाला* शाकाहारी *राम* था।। *चाहते तो खा सकते थे वो* मांस पशु के ढेरो में।। लेकिन उनको प्यार मिला ' *शबरी' के जूठे बेरो में*॥ *चक्र सुदर्शन धारी थे* *गोवर्धन पर भारी थे*॥ *मुरली से वश करने वाले* *गिरधर' शाकाहारी थे*॥ *पर-सेवा, पर-प्रेम का परचम* चोटी पर फहराया था।। *निर्धन की कुटिया में जाकर* जिसने मान बढाया था॥ *सपने जिसने देखे थे* मानवता के विस्तार के।। *नानक जैसे महा-संत थे* वाचक शाकाहार के॥ *उठो जरा तुम पढ़ कर देखो* गौरवमय इतिहास को।। *आदम से आदी तक फैले* इस नीले आकाश को॥ *दया की आँखे खोल देख लो* पशु के करुण क्रंदन को।। *इंसानों का जिस्म बना है* शाकाहारी भोजन को॥ *अंग लाश के खा जाए* क्या फ़िर भी वो इंसान है? *पेट तुम्हारा मुर्दाघर है* या कोई कब्रिस्तान है? *आँखे कितना रोती हैं जब* उंगली अपनी जलती है *सोचो उस तड़पन की हद* ...